सुनले सूरज हे भगवान, काबर करथस तैं हलकान।
आथव बड़े बिहनिया आप, बड़गे हावय अड़बड़ ताप।
आगी जइसन करथस घाम, उसना जावत तन के चाम।
होगे होही कोनो पाप, करबोन देवा तोरो जाप।।
गरमी के दिन जब जब आय, तरिया नदियाँ सबो अटाय।
गरमी ले हे सब थर्राय, कूलर पंखा काम न आय।।
भुइयाँ मा चट जरथे पाँव, तन हा खोजत रहिथे छाँव।।
घेरी बेरी गला सुखाय, अबड़ पछीना हा चुचवाय।।
ज्ञानी मनखे ज्ञान सुझाय,नेकी के वो बात बताय।
पेड़ लगा के करो उपाय,जेकर से सब राहत पाय।।
बरसा के जल सबो बचाव, तरिया डबरी बाँध बनाव।।
बंद करव प्लास्टिक उपयोग, तभे दूर ये होही रोग।।
रचनाकार-
राजेश कुमार निषाद,
ग्राम - चपरीद, रायपुर छत्तीसगढ़
सबो पाठक ल जोहार..,
हमर बेवसाइट म ठेठ छत्तीसगढ़ी के बजाए रइपुरिहा भासा के उपयोग करे हाबन, जेकर ल आन मन तको हमर भाखा ल आसानी ले समझ सके...
छत्तीसगढ़ी म समाचार परोसे के ये उदीम कइसे लागिस, अपन बिचार जरूर लिखव।
महतारी भाखा के सम्मान म- पढ़बो, लिखबो, बोलबो अउ बगराबोन छत्तीसगढ़ी।