जिहाँ मोल नइहे ये दुनिया म, त तोल कोन करय।
नइ करें भाव बियाना, अऊ झोली कोनो नइ भरय।।
होवत हे बिहान फेर, हजाये मति सचेत नइ पावय।
पिसान के संगे म, किरा कस चिक्कन रमजावय।।
उपरछावा कठवा हे तन, हिरदे हे खुरहोरी,मीठ पानी।
कब गुनबे नोहर तन ल, करेजा होही जब चानी चानी।।
परकबारी बन गेहे तोर तन, मन बोलय जइसन माने।
अबुजहा गरब गुमान में, फोकट उपराहा सेखी ताने।।
धरम करम ल छोड़ के, उफनात भँवर में डुबकी लगाये।
मँदरस जस बानी छोड़ के, अरई में हुदरे सही गोठियाये।।
पाप भरे तन-मन म, दया-मया अऊ सेवा ल नई जाने।
बन जा मानुस चंदन रे, माथ अंगरी ल खुशबू म रे साने।।
रचनाकार-
अजय शेखर 'नैऋत्य'
पता- अमलोर, सिरपुर महासमुंद
सबो पाठक ल जोहार..,
हमर बेवसाइट म ठेठ छत्तीसगढ़ी के बजाए रइपुरिहा भासा के उपयोग करे हाबन, जेकर ल आन मन तको हमर भाखा ल आसानी ले समझ सके...
छत्तीसगढ़ी म समाचार परोसे के ये उदीम कइसे लागिस, अपन बिचार जरूर लिखव।
महतारी भाखा के सम्मान म- पढ़बो, लिखबो, बोलबो अउ बगराबोन छत्तीसगढ़ी।