जन मन के गीत ल जन-जन के अंतस म उतारने वाला महान संगीतकार खुमान साव अब हमर बीच नइ रिहिन। 5 सिंतबर 1929 के अवतरे खुमान लाल साव जी ह 90 बच्छर के उमर म 9 जून 2019 के ये दुनिया ल छोड़ दिस अऊ जावत-जावत हारमोनियम अउ तबला के संगत म सबला रोवावत कहिगे- “माटी होही तोर चोला रे संगी, माटी होही तोर चोला...।” सिरतोन म ये चोला माटी के तो आए अउ सबला एक दिन दुनिया छोड़ उही माटी म जाना हावय। फेर ये नश्वर दुनिया म उंकरे अवई ह सार्थक होथे जेन जावत खानी अपन काम के बुति जबर नाम छोड़ जाथे। लोक संगीत के दुनिया म खुमान लाल साव जी एक अइसे नाम आए जेन ल जन-जन जानथे।
साव जी ये मुकाम तक पहुंचे बर गजब मेहनत करे हावय, 14 बच्छर के नान्हे उमर म संगीत के लगन ह उनला नाचा पेखन ले जोड़ दिस। दाऊ मंदराजी के रवेली साज के अलावा अऊ कतकोन नाचा पार्टी, आर्केस्टा उक म अपन संगीत के धाक जमाईस। साव जी आन-आन संगीत समिति ले जुड़े बर तो जुड़िस फेर ओकर मन ह तो छत्तीसगढ़ के लोक संगीत बर कुछ ठोस काम करने बर मनन करते राहय, ठउका उही बखत दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ह उनला अपन संस्था म शामिल करिस अउ फेर ताहन शुरू होइस मिशन चंदैनी गोंदा। साव जी ह अपन बारे म कहाय कि जब मैं दाऊ रामचंद्र देशमुख जी संग जुरेव तव कई महीना ले अपन घर-दुवार, खेती-खार, परिवार सब ल छोड़के संगीत के कठिन साधना करेवं।
14 बच्छर के उमर ले सुरू होय संगीत साधना के सफर ह अंतिम सांस तक जारी रिहिस। अऊ ये कला यात्रा म धुप छॉव सही कतकोन दुख-सुख उंकर आगू आइस जेकर ने लड़के छत्तीसगढ़ी लोककला मंच के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के बाद चंदैनी गोंदा के सियानी पागा बांधे दाऊ जी के सपना ल पूरे करे म कोनो कसर नइ छोड़िन। कला के प्रति समर्पण ल देखत लोक संगीतज्ञ खुमान साव जी ल हम छत्तीसगढ़ी कला संस्कृति अउ साहित्य के क्रांति युग 1971 के आखरी महारथी कहि सकथन। अऊ अब उंकर जाए ले माने एक युग सिरागे। साव जी घलोक दाऊ रामचंद्र देशमुख के सानिध्य म छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया के अस्तित्व अउ अस्मिता के बात अपन गीत-संगीत अउ गम्मत के माध्यम ले आम जनता के बीच राखे के प्रयास करय। गुनी जन मन कहिथे कि दाऊ रामचंद्र देशमुख के चंदैनी गोंदा सिरिफ सांस्कृतिक संस्था भर नइ रिहिस भलुक एक मिशन रिहिस छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया मनके अस्तित्व अउ अस्मिता जागाए के। जेमा खुमान लाल साव जी के भी अहम भूमिका रिहिसे।
अतका साल बाद अब अइसे लगथे कि दाऊ जी के सपना ह साकार रूप लेवथे। गांव-गांव म छत्तीसगढ़ी कला, संस्कृति अउ साहित्य के संस्था बनगे हावय। अलग छत्तीसगढ़ राज बनगे। छत्तीसगढ़ी म गीत, गजल, कहानी, बियंग, उपन्यास सबे कुछ लिखे जावथे। वइसे दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ल देखे के सौभाग्य तो नइ मिलिस हमला फेर जतका उनला पढ़े हाबन ते मुताबिक इहिच तो सपना रिहिस दाऊ जी के जेन ल पुरा करे खातिर खुमान साव जी ल अपन संग जोड़ के मिशन चंदैनी गोंदा के माध्यम ले छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ी कला संस्कृति अउ साहित्य के अलख जगाइस। दाऊ जी के अधुरा सपना ल खुमान साव जी ह पूरा होवत अपन नजरभर देखे हावय अउ ओमन सरग म जाके ये सब बात ल उनला जरूर बताइन होही।
अलग छत्तीसगढ़ राज बने के बाद कई बार चंदैनी गोंदा के कार्यक्रम देखे के अवसर मिलिस। गजब के प्रस्तुतिकरण रिथे, शहर म तो एके दू घंटा के होथे पर असल आनंद तो गांव के मंच म रातभर देखे ले आथे। लगभग 30-40 कलाकार के दल ल अतका साल तक चलाना साव जी के कुशल नेतृत्व क्षमता ल दर्शाथे। चंदैनी गोंदा के कार्यक्रम जेन भी गांव म लगे होही ओमन साव जी के बेवहार ले भी वाकिफ होही। गांव के लोगन जब कार्यक्रम लगाये बर जाथे तो साव जी आगूच म रट-रट माने सोज-सोज बात करय, अतका कन देबे, एदइसे-एदइसे कार्यक्रम होही अउ गांव म तै अइसन बेवस्था बनाके राखबे। साव जी साफ-साफ बात करय भले सामने वाला ल लगय के सियान ह कड़ा जुबान के हावय फेर साव जी तो साफ अउ नेक दिल के स्वाभिमानी व्यक्ति रिहिसे। उन जीवन म कभु अपन स्वाभिमान संग समझौता नइ करिन। स्वाभिमानी अउ सिद्धांतवादी साव जी अनुशासन के पक्का रिहिसे जेन गांव म भी कार्यक्रम लगय उहां कोनो भी विकट परिस्थिति होवय पहुंचय जरूर। चंदैनी गोंदा के अलावा अउ कोई संस्था छत्तीसगढ़ शायद ही होही जेमा 30-40 हजार के दर्शक जुटत होही। अतका भीड़ ल संभालना अउ रातभर मंच ले जोड़े रखना साव जी के कुशल निर्देशन क्षमता अउ प्रतस्तुतिकरण के ऊंचाई ल दर्शाथे। 21 वीं सदी के भारत म पुरातन छत्तीसगढ़ के लोकरंग के अमिट छाप छोड़ना चंदैनी गोंदा के मिशन अउ खुमान साव जी मेहनत ले ही साकार होइस।
मिशन चंदैनी गोंदा के कारण ही आज छत्तीसगढ़ के लोक कला कहा ले कहा पहुंचगे हावय। केहे जाथे कि छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म कला, संस्कृति अउ साहित्य ह तइहा समे ले अब तक वाचिक परंपरा म संरक्षित हावय। जुन्ना सियान मन भलुक आखर गियान कोति चेत नइ करिन फेर अपन परंपरा अउ संस्कृति के सरेखा करे के बड़ सुघ्घर उदिम करिन किस्सा-कहिनी अउ गीत-गाथा के रूप म अपन लोक कंठ म सहेजे के। पीढ़ी दर पीढ़ी उही लोक कला-संस्कृति अउ साहित्य ह आज मौखिक ले लिखित युग तक पहुंचगे हावय अउ ये समयांतराल म बखत के कतकोन धुर्रा माटी के लबादा ह उनला प्रभावित करे के कोशिश म लगे रिहिस तभे देवता सहीं छत्तीसगढ़ के माटी म दाऊ दुलार सिंह मंदराजी अउ दाऊ रामचंद्र देशमुख के बाना उचइया खुमान लाल साव जइसन व्यक्तित्व के जनम होइस।
खुमान साव जी ह अपन जीवन भर लोक म बगरे गीत कर्मा, ददरिया, सुवा, गउरा-गउरी, भोजली, पंथी, फाग, जसगीत, बिहाव गीत, सोहर गीत के अलावा अऊ आन पारंपरिक गीत मनला संकलित करके ओला नवा साज संगत म पिरो के मौलिकता के संग लोकप्रिय बनाये के जबर बुता करे हावय। एक तरह से केहे जाए तव छत्तीसगढ़ के पारंपरिक लोकगीत मन खुमान साव जी के संगीत ले नवा जीवन पाइस नहिते आधुनिकता के बरोड़ा अउ पाश्चात्य संगीत के प्रभाव ह जीलेवा हो जतिस। उकरे मेहनत के परसादे आज घर-घर म चंदैनी गोंदा के गाना बाजथे अउ ओकर गीत बिगर तो कोनो नेंग-जोग पूरा नइ होवय।
बिहाव संस्कार के गीत ल ही देखव ना एक डहर दफड़ा, दमउ अउ मोहरी म चुलमाटी, तेलमाटी, मायन भड़उनी, टिकावन अउ बिदाई गीत बाजत रिथे अउ दूसर कोति दाई-माई, ढेड़हिन सुवासिन मन बिहाव के नेंग-जोग करत रिथे। छट्टी छेवारी आगे अब सोहर गाना हावय तव चंदैनी गोंदा के गीत बजाव। परंपरा के निर्वाह अउ धार्मिक अनुष्ठान बर पंथी, गउरा गउरी, सुवा, जसगीत, फाग, राउत नाचा अऊ उच्छाह मंगल बर कर्मा, ददरिया के लोकधुन। चंदैनी गोंदा अउ खुमान साव के ओढ़र म आज भले हम लोकगीत के बात करत हन फेर येमा छत्तीसगढ़ के कला संस्कृति अउ साहित्य तको समाय हाबे। कला संस्कृति संग साहित्य घलो मिशन चंदैनी गोंदा के हिस्सा रिहिसे। आज के समे म हमर युवा पीढ़ी ह मौखिक ले लिखित परंपरा म आगे हावय तव हमरो जिम्मेदारी बनथे कि अपन पुराखा के करनी करम के सरेखा करन जेकर ले हमर अवइया पीढ़ी तको 1927 अउ 1971 के छत्तीसगढ़ी कला संस्कृति अउ साहित्य के पुरोधा मनके योगदान ल सुरता राखे राहय।
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