जेन मनखे के रचना मन भले कभू पत्र-पत्रिका के मुंह नइ देखिन, फेर लोगन के कंठ म बिना वोकर रचनाकार के नांव जाने बइठिस अउ सुर धर के निकलिस, उही तो लोककवि होइस। सन् 1917 के रथयात्रा परब के दिन रायपुर जिला के गाँव छतौना (मंदिर हसौद) म महतारी फुलबाई अउ ददा रामचरण यदु जी के घर जनमे बद्रीबिशाल यदु 'परमानंद' जी के संग अइसने होए हे। उनला उंकर जीयत काल म ही लोककवि के रूप म चिन्हारी मिलगे रिहिसे।
वोकर लोकप्रियता अतेक रिहिसे, जेला देख के हमूं मनला गरब होवय। मोला सुरता हे, बसंत पंचमी के दिन हर बछर गुरु पूजा के रूप म उंकर सम्मान होवय। पूरा छत्तीसगढ़ म चारों मुड़ा सैकड़ों के संख्या म बगरे उंकर चेला मन अपन-अपन मंडली संग सकलावयं। हर बछर ए आयोजन ह अलग-अलग जगा म होवय, तेकर सेती मैं दुरिहा वाले आयोजन म तो नइ जा सकत रेहेंव, फेर भांठागांव म दू-चार बखत संघरे रेहेंव।
सन् 1947-48 म परमानंद जी स्व. हनुमान प्रसाद यदु जी ले साहित्य विशारद के शिक्षा लिए रिहिन हें। तब हरि ठाकुर, देवीप्रसाद वर्मा 'बच्चू जांजगिरी जइसन साहित्यकार मन उंकर गुरु-भाई रिहिन। परमानंद जी माटी के कवि रिहिन। उंकर रचना मन म छत्तीसगढ़ माटी के महक जनाथे। भले उन रायपुर जइसन शहर म रहंय, फेर ग्रामीण संस्कार अउ परिवेश ह उंकर गीत म सांस लेवय। बसंत के आगमन म लिखे एक गीत देखव-
परमानंद जी सैकड़ों के संख्या म गीत, भजन अउ फाग लिखिन, फेर कभू वोला सकेल के नइ राखिन। मैं तो कतकों बेर अइसनो देखे हौं, कोनो उंकर चेला या गायक कलाकार रचना मांगे बर या लिखवाए बर आए राहय, वोला वो लिख के ओरिजिनल प्रति ल ही दे देवत रिहिन हे। न वोकर दूसरा प्रति बनावय, न अउ कुछू करय। एकरे सेती उंकर रचना मन के बारे म निश्चित कह पाना कठिन हे, के उन कतेक लिखिन, कोन-कोन संदर्भ म लिखिन। एकदम फक्कड़ किसम के संत मन होथें न, न कुछू के चिंता न फिकर। बस अपन म मस्त। तभो ले उंकर मंडली अउ चेला मन जगा ले खोज-निमार के 45 ठन रचना मनला छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति डहार ले 'पिंवरी लिखे तोर भाग' के नांव ले एक संकलन के रूप म निकाले गे हे।
परमानंद जी जिनगी के आखिरी बेरा म थोरिक बनेच शारीरिक कष्ट पाइन हें। वइसे ए बात ल मैं आध्यात्मिक मनखे होय के सेती समझथौं, काबर ते ऊपर वाला जेला मोक्ष या सद्गति देथे, वोकर पिछला जनम मन के हिसाब-किताब ल बरोबर करे बर जिनगी म कुछ अइसन तकलीफ के बेरा देथे। अध्यात्म म इही ल 'प्रारब्ध भोग' केहे गे हे। प्रारब्ध भोग ल पूरा करे बिना कोनो भी मनखे ल सद्गति नइ मिलय।
कतकों झन कहंय, के उंकर जिनगी तो एक संत बरोबर रेहे हे, तेकर सेती उनला समाधि देना उचित रइही। कतकों दाह संस्कार कर के वो जगा स्मारक बनाय के बात काहंय। आखिर म दाह संस्कार कर के उही जगा म चबूतरा बनाए के निर्णय लिए गइस। आज वो चबूतरा ल 'परमानंद चबूतरा' के नांव म लोगन जानथें। कोनो परब-विशेष म उंकर चेला मन वोमा दीया-अगरबत्ती कर नरियर-फूल चढ़ा के उंकर आशीर्वाद लेवत रहिथें। उंकर सुरता ल डंडासरन पैलगी...
सबो पाठक ल जोहार..,
हमर बेवसाइट म ठेठ छत्तीसगढ़ी के बजाए रइपुरिहा भासा के उपयोग करे हाबन, जेकर ल आन मन तको हमर भाखा ल आसानी ले समझ सके...
छत्तीसगढ़ी म समाचार परोसे के ये उदीम कइसे लागिस, अपन बिचार जरूर लिखव।
महतारी भाखा के सम्मान म- पढ़बो, लिखबो, बोलबो अउ बगराबोन छत्तीसगढ़ी।