छत्तीसगढ़ी साहित्य जगत म कुछ अइसनों साहित्यकार होए हें, जिंकर चिन्हारी आरुग मंचीय रचनाकार के रूप म जादा होए हे। बिसंभर यादव 'मरहा' जी इही कड़ी के कवि रिहिन हें, जेकर बिना इहाँ के कवि सम्मेलन, रामायण अउ आने सांस्कृतिक मंच मन सुन्ना असन लागय।
6 अप्रैल 1931 के दुरुग तीर के गाँव बघेरा म कुशल यादव अउ महतारी चैती बाई के कोरा म अवतरे बिसंभर जी संग मोर चिन्हारी सन् 1987 के दिसंबर महीना म तब होए रिहिसे, जब छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के विमोचन खातिर नेवता दे बर मैं चंदैनी गोंदा के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी घर बघेरा गे रेहेंव। जतका बेरा मैं दाऊ जी के घर पहुंचेंव वतका बेरा मरहा जी घलो उहें बइठे रिहिन हें। तब दाऊ जी ह उंकर संग मोर परिचय करवाए रिहिन हें अउ मरहा जी ल घलो 'मयारु माटी' के विमोचन के नेवता दिए खातिर कहे रिहिन हें। तब मरहा जी मोला विमोचन के नेवता झोंकत अपन एक कविता 'अस्पताल के एक्सरा' ल 'मयारु माटी' म छापे खातिर दिए रिहिन हें।
फेर उंकर संग जादा गोठ-बात तब होवय, जब दाऊ जी मोला कभू-कभार बघेरा म ही रात रहे खातिर कहि देवत रिहिन हें। तब मोर बेरा के पहवई ह मरहा जी संग ही जादा होवय. अइसने बेरा म मरहा जी ल जादा जाने अउ समझे के अवसर मिलय. उंकर संग दाऊ जी ऊपर बने विडियो 'यात्रा जारी है' ल घलो संगे म देखे रेहेन।
मरहा जी मंच के जतका मयारु अउ लोकप्रिय कवि रिहिन हें, वतकेच मयारु मनखे घलो रिहिन हें। उंकर संग कतकों मंच म संग म कविता पाठ करे के अवसर मिले रिहिसे। मरहा जी एक अइसन रचनाकार रिहिन हें, जेला अपन जम्मो रचना कंठस्थ राहय। मैं वोला कभू कागज-पातर धर के रचनापाठ करत नइ देखेंव। हाँ, डायरी के नांव म एक नान्हे असन पाकेट डायरी जरूर धरे राहयं, जेमा जिहां-जिहां कार्यक्रम म संघरंय उंकर दिन, बेरा अउ आयोजक के नांव लिख के वोमा दस्तखत करवा लेवत रिहिन हें। एक-दू पइत तो महूं उंकर डायरी म लिख के दस्तखत करे रेहेंव।
अपन 'मरहा' उपनाम धरे के बारे म उन बतावंय- एक पइत एक बड़का कार्यक्रम के माईपहुना दाऊ रामचंद्र देशमुख जी रहिन, अध्यक्षता संत कवि पवन दीवान जी करत रिहिन हें अउ संचालन श्यामलाल चतुर्वेदी जी। इही म बिसंभर जी के देंह-पांव ल देख के दाऊ रामचंद्र देशमुख जी पवन दीवान जी ल मजा लेवत असन कहिन के एकर 'मरहा' उपनाम कइसे रइही? दीवान जी के कट्ठल के हंसई तो दुनिया भर म जाने जाय, उन ए 'मरहा' शब्द ल सुनिन त अपन चिरपरिचित शैली म ठहाका लगावत हुंकारू भर दिन। तब ले बिसंभर यादव जी अपन उपनाम 'मरहा' लिखे लागिन। ए बात ल मोला मरहा जी अउ दाऊ जी दूनों झन बताए रिहिन हें।
मरहा जी ल काव्य शिरोमणि के सम्मान ले घलो सम्मानित करे गे रिहिसे, जब बिलासपुर म 'मरहा नाईट' के आयोजन डॉ. गिरधर शर्मा जी के माध्यम ले होए रिहिसे। बिलासपुर के प्रसिद्ध राघवेंद्र भवन म आयोजित 'मरहा नाईट' म खचाखच भीड़ राहय, जेकर दिल ल मरहा जी अपन लाजवाब प्रस्तुति के माध्यम ले जीत ले रिहिन हें। मरहा जी के सम्मान म तब उच्च न्यायालय बिलासपुर के न्यायाधीश रमेश गर्ग जी ह कहे रिहिन हें- 'पहिली मैं संत कबीर जी के बारे म अड़बड़ सुने रेहेंव पढ़े घलो रेहेंव, फेर आज ओला मैं ह मरहा जी के रूप म साक्षात सुने हौं। इही कार्यक्रम म मरहा जी ल 'काव्य शिरोमणि' के उपाधि ले सम्मानित करे गे रिहिसे।
मरहा जी के दू काव्य संग्रह 'हमर अमर तिरंगा' अउ 'माटी के लाल' डॉ. गिरधर शर्मा अध्यक्ष- छत्तीसगढ़ साहित्यकार परिषद बिलासपुर के संपादन म छपे रिहिसे।
वो कविता ल पढ़तेच दाऊ जी के आंखी ले आंसू बोहाए लगिस। तहाँ ले कोतवाल करा हांका परवा के गुड़ी म गाँव वाले मनके बइठका सकेलिस। तहाँ ले गुटबाजी अउ मनमुटाव के जम्मो किस्सा के बिदागरी होगे। ए घटना ले बिसंभर जी सोचिस- जब चार डांड़ के कविता म गाँव के अतेक बड़े समस्या के समाधान होगे, त फेर तो अउ कविता लिखहूं, तेमा देश के बड़े-बड़े समस्या के निपटारा हो सकय।
मरहा जी कविता पाठ करे के संगे-संग मंच के सिद्धहस्त अभिनेता घलो रिहिन। ऐतिहासिक सांस्कृतिक प्रस्तुति 'चंदैनी गोंदा' म जीपरहा कवि के अभिनय उंकर अविस्मरणीय भूमिका हे। अइसने लोक नाट्य 'कारी' म घलो पटइल के अभिनय म जनमानस ल अपन प्रशंसक बना लेवत रिहिन हें। अपन जीपरहा कवि वाले अभिनय ल तो उन कतकों रामायण अउ आने सांस्कृतिक मंच मन म घलो देखा देवत रिहिन हें।
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