पितर पाख कब हावय-
पितर देवता के आसिस-
कब-कब आथे पितर-
पितर बर जेवन-
पहिली पितर म पितर नेवता अउ पितर भात-
जेवन म उरिद दार अउ तरोई के महत्ता : वरिष्ठ साहित्यकार सुशील भोले के अनुसार-
‘पितर पाख के लगते माई लोगिन मन घर के दुवारी ल बने गोबर म लीप के वोमा चउंक, रंगोली आदि बनाथें अउ फूल चढ़ा के सजाथें। वोकर पाछू उरिद दार के बरा बनाथें जेमा नून नइ डारे जाय। संग म बोबरा, गुरहा चीला आदि घलोक बनाए जाथे अउ साग के रूप म तरोई ल आरुग तेल म छउंके जाथे।
अइसे मानता हे के तरोई तारने वाला जिनिस आय काबर के ये शब्द के उत्पत्ति तारन ले तरोई होए हे। वइसे तरोई ह पाचक अउ स्वादिष्ट होथे जेमा अनेकों किसम के पुस्टई होथे फेर बने नरम-नरम घलोक होथे, जेला भोभला डोकरा-डोकरी मन आसानी के साथ पगुरा के लील डारथें। आखिर पितर मन ला तो हमन उहिच रूप म सुरता करथन न।
वइसे तो अपन पुरखा मन के कई पीढ़ी तक के सुरता अउ तरपन करना चाही फेर जे मन अइसन करे म अपन आप ल सक्षम नइ पावंय वोमन पितर पाख म गया जी (बिहार राज्य) म जाके उंकर तरपन करके हर बछर के सुरता अउ तरपन ले मुक्ति पा जथें। अइसे मानता हे के जेकर मन के तरपन ल पितर पाख म गया जी म कर दिए जाथे वोमन ल मोक्ष मिल जाथे, वोकर बाद फेर वोकर मन के तरपन करना जरूरी नइ राहय। वइसे जेकर मन के श्रद्धा अउ सामरथ हे वोमन अपन पुरखा मन के सुरता अउ तरपन गया जी म तरपन करे के बाद घलोक कर सकथें। एमा कोनो किसम के बंधन या दोस नइ माने जाय। तरपन देवइया मनला जल-अरपन करे के बेर उत्ती मुड़ा म मुंह करके जल अरपन करना चाही अउ ए बखत अपन खांध म सादा रंग के कांचा कपड़ा पंछा आदि घलोक रखना चाही।
वइसे तो हिन्दू धर्म अउ रीति रिवाज के मुताबिक पितर मानये के कई विधी बताये गे हावय, फेर लोक जीवन म ग्राम्य मानता के अनुसार जेन प्रचिलित हावय तेनो ह गुनिक सियान मनके चलागन आए ये सेती जेन तइहा समे ले घर के सियान मन मानत आवत हाबे उही मुताबिक परब ल मनाना चाहि। आन देश या राज्य ले देखे जाए तव छत्तीसगढ़ रीति-रिवाज म जादा कुछ अंतर नइ दिखे।
पितर देवता मन खातिर नेवता, चउंक पुरे अंगना म पानी अउ पिड़हा मड़ाके आव-भगत, नदिया-नरवा-तरिया म कासी, तरोई ले तरपन। मन पसंद भोजन म उरिद दार के बरा, अऊ छानही म कउवा मनला देख के दू परोसा उपराहा देना, पुरखा मनके सुघ्घर सुरतांजलि आए।
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अपन घर बिते सियाने मन ही पितर देवता आए। हमन अपन देवलोकवासी पुरखा सियान मनला अइसे आन बखत तो सुरता नइ करे सकन, आन-आन बुता-काम म फदके रिथन तब इही पितर पाखभर ओमन ला देवता बरोबर सुमिरन करत मया आसीस पाथन।
सबो पितर देवता ल एके दिन नइ माने जाए, जेन तिथि के उंकर स्वर्गवास होये रिथे उही दिन माने जाथे। फेर डोकरी मनला अकसर नवमीं के मानथे।
पितर ल जब हम देवता किथन त सउहे उंकर मया आसीस हमन ला मिल जथे। तभो ले उंकर मन पसंद के भोजन परोसे जाथे, छत्तीसगढ़ म बरा-बोबरा के संग तरोई के परंपरा हावय।
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