कविता : दुख पीरा के साथी |
मैं दुख पीरा के साथी औ, तपसी कस तन ल साधे हौ।
मिहनत संग मितानी बदके, सुख सम्मत ल बॉटे हौ।।
मिहनत संग मितानी बदके, सुख सम्मत ल बॉटे हौ।।
डरहा घुचहा ओ ह होथे, जउन करथे अनीति के काम।
चार बटमार मन लुकाय फिरे, लोभिया जग ल करे बदनाम।।
मै ठग लबारी नइ जानौ, इमान के रसदा चतवारे हौ।1।
गरीब दुखिया सेवा के खातिर, मैं बढ़ाऐव दमखम छाती।
रोग बियाधी विपद हरे बर, मै बाधेव मया के पाखी।।
जग के अज्ञान हरे बर, मै गियान के दियना बारे हौ।2।
अपन हक अधिकार बताये बर, मैं सबले आगू रेगे हौ।
अनियाव ककरो संग झन होवै जिनगी के सपना देखे हौ।।
मनखे पन के मान बढ़ाये बर, मै बीर कस बाना बांधे हौ।3।
मोर करम कहानी गीता रामायन, जिनगी के अधार हे।
गींधी बबा के बोली बचन, सबो बर मया अउ दुलार हे।।
नारी के मान बढ़ाये बर, दुरगा भक्ति अंतस राखे हौ।4।
छत्तीसगढ़ मोर बर सरग ये, येकर बर जीना मरना हे।
सबके जीवन म खुसी लाये बर, दिन रात उदीम करना हे।।
सदारम देस सेवा करे बर, मैं मन मे परन ठाने हौ।5।
सदाराम सिन्हा
देवभोग, गरियाबंद
MO-6261378830
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