अंजोर.रायपुर। महतारी भाखा के मान बढ़ाये खातिर अब प्रदेस के युवा मन जबर उदीम करत हाबे। एक डहर सबो विधा म लेखन बुता चलत हाबे त दूसर कोति अंतरजाल म तको छत्तीसगढ़ी के डेटा सकेले के बुता होवत हाबे। अब के जमाना ल इंटरनेट के केहे जाथे अउ जेन येला नइ जाने, मानो वो ए दुनिया म नइये। किताब के दिन नंदागे, अब तो सरी गियान इंटरनेट म हमागे अउ एक चुटकी म हब ले पाथन। एक समे म गूगल उक मन छत्तीसगढ़ी ल सर्च ले बाहिर कर देत रिहिस समझ नी आवथे किके अब वो खुदे मुहांचाही करत हावय, छत्तीसगढि़या मन बर गरब के बात आए। डेटा भर नहीं भाषा के डिजिटलाइजेशन अउ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक म छत्तीसगढ़ी तको घउंरही। बताये जाथे के भारतीय विज्ञान संस्थान (आई.आई.एस.सी) बैंगलोर एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रशांत कुमार घोष संग एसोसिएट रिसर्च डॉ. हितेश तिवारी के जबर उदीम ले अब सिरी, कोरटाना, एलेक्सा अउ गूगल तको छत्तीसगढ़ी म मुहांचाही करही।
गियान हो या शिक्षा, एला कभू भी कंप्यूटर के उपयोग म बाधक नइ बनना चाही। तकनीक तभेच सार्थक होथे जब वो ह ओ मनखे तक आसानी ले मिले जेला येकर जरूरत हाबे। का ये एक बड़का क्रांति नोहय जब जब कोनो ल अपन जरूरत के जानकारी अपन भाषा अउ उपभाषा म मिले? भारत के प्रतिष्ठित भारतीय विज्ञान संस्थान (आई.आई.एस.सी), बैंगलोर ह ए रकम ले क्राँतिकारी बदलाव के लाने के खातिर एक महत्वाकांक्षी परियोजना सुरू के हावय।
आज सिरी, कोरटाना, एलेक्सा अउ गूगल उक ले हम चुटकी म जेन भी जानकारी चाही वो ल पाथन फेर जब इही ल अपन भाषा म चाही त गजग परसानी होथे। आज के बखत म कोनो बिसय म हमन ल छत्तीसगढ़ी म जानकारी चाही त नइ मिलय, छत्तीसगढ़ी भाषा ल तको आने-आने क्षेत्र म आने-आने रकम ले बोले जाथे। भारतीय विज्ञान संस्थान (आई.आई.एस.सी), बैंगलोर डहर ले आने-आने भारतीय भाषा, उपभाषा के संग ही छत्तीसगढ़ी भाषा ल तको डिजिटल करत हावय।
छत्तीसगढ़ी भाषा ऑनलाईन प्लेटफार्म म उपलब्ध होए ले छत्तीसगढ़ के जनमानस ल जेन भी जानकारी चाही वो सबो अपन भाषा अउ उपभाषा म उपलब्ध हो सकही। एकेच भाषा ल आने-आने रकम ले बोलथे जइसे छत्तीसगढ़ी ल मैदानी क्षेत्र म आने तरीका ले बोले जाथे। सरगुजा, बिलासपुर, रायगढ़, कवर्धा उक क्षेत्र म जाबे त उहाँ के बोली अउ शैली म फरक आ जात हावय।
गरब के बात हाए के येमा छत्तीसगढ़ी तको सामिल होए हाबे अउ येमा बुता करे खातिर पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के साहित्य अउ भाषा अध्ययनशाला के शोध उपाधि धारक डॉ. हितेश कुमार तिवारी के चयन एसोसिएट रिसर्च (छत्तीसगढ़ी) के पद म करे गे हावय। ओमन रायगढ़, सरगुजा, बिलासपुर अउ कवर्धा जइसन क्षेत्र म बोले जाये वाला छत्तीसगढ़ी के खातिर आने-आने साथी के संग बुता करत हावय।
अपन बोली म ही जानकारी उपलब्ध होए ले दूर-दराज के गाँव म रहइया कोनो भी मनखे स्वास्थ्य संबंधी मुद्द ले लेके पशुपालन, किसान मनके जिनगी म महत्व, पारंपरिक अउ आधुनिक खेती के तरीका, सर्वोत्तम खातु अउ कीटनाशक के प्रयोग, वित्त, बैंकिंग, व्यवसाय, सरकारी योजना, लइका के स्वास्थ्य अउ पोषण उक के विस्तार ले जानकारी तको पा सकत हावयं। इहाँ तक के कम पढ़े-लिखे, गरीब आदमी तको अपन कमाई ल सुरक्षित जगह म निवेश करे ले लेके अपन लइका के खातिर बढि़या शिक्षा के मउका जइसे आने-आने जानकारी तक पहुँच सकत हावय।
डॉ. हितेश कुमार तिवारी कोन हरय जानव-
- पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय म सुरू होए छत्तीसगढ़ी म एम.ए, एम.फ़िल, पी-एच.डी करइया पहिली विद्यार्थी आए डॉ.हितेश कुमार तिवारी। जेन अभी भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलोर संग एसोसिएट रिसर्च (छत्तीसगढ़ी) के पद म बुता करत हाबे।
- जानबा होवय के ओमन छत्तीसगढ़ी भासा बर सरलग गुनान गोठ करत रिथे। बेरा-बेरा म ओमन भासा खातिर जन जागरन बुता अउ चर्चा गोष्ठी म प्रतिभागी के रूप म अपन बात दमदारी ले रखथे।
भारतीय विज्ञान संस्थान (आई.आई.एस.सी) बैंगलोर के बारे म अऊ इहां पढ़व-
एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रशांत कुमार घोष कोन हरय जानव-
- प्रशांत कुमार घोष भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बैंगलोर म इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग (ईई) विभाग म सहायक प्रोफेसर हाबे। ओमन अभी छत्तीसगढ़ी के संग अऊ भारतीय भाषा जइसे बंगाली, हिंदी, भोजपुरी, मगधी, मैथिली, मराठी, तेलुगु अउ कन्नड़ म आवाज के माध्यम ले सूचना पहुँचाये के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित तकनीक म बुता करत हाबे।
- जानबा होवय के ओमन अपन इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग म पीएच.डी. 2011 म दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (यूएससी) ले करिस। उनला विज्ञान अउ प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), सरकार डहर ले इंस्पायर फैकल्टी फेलोशिप ले सम्मानित करे जा चुके हाबे। यूएससी म 2010-11 बर ईई के श्रेणी म शिक्षण म उत्कृष्टता खातिर उनला सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन टीचिंग अवार्ड ले तको सम्मानित करे गे हावय।
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