बिहाव के रस्म जेमा छत्तीसगढ़ के संस्कृति झलकथे। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन ल जानना हवय त बिहाव के पूरा रस्म ला देखव आप अनुभव करहू कि इहाँ के मनखे कतका सहज अउ सरल हवय। छत्तीसगढ़ी गीत म बिहाव के चित्रण तो हमेशा से सुनत आत हन फेर अब छत्तीसगढ़ी छन्द मा येकर सुग्घर वर्णन छन्दकार मन करत हवँय।
- बेटी के बिहाव लगे ले घर भर मा उछाह रहिथे । जनकवि कोदूराम दलित के मत्त सवैया- नोनी के बिहाव म येकर सुग्घर वर्णन देखव -
माड़िस हवय मोर नोनी के,मन भावन बिहाव बड़ सुग्घर।
सहँरावत हौं अपन भाग ला,ये मंगल बेला मा मैं हर।
बजत हवय मनमोहक बाजा,बजत हवय सुग्घर शहनाई ।
करत हवँय सुग्घर मड़वा के,कतको झन मन गजब बड़ाई।
- चुलमाटी ले बिहाव के शुरुवात होथे तेकर बाद मड़वा छाये जाथे। लावणी छंद म चोवाराम वर्मा "बादल" के सुग्घर चित्रण -
हे बिहाव के उर्थी माढ़े, मड़वा तको छवाना हे।
डूमर डारा अउ पाना ला,खेत-खार ले लाना हे।।
चुलमाटी संग तेलमाटी,नाचत गावत हम जाबो।
मेंड़ो के माटी ला लाके, कुल के सब देव मनाबो ।।
- चुलमाटी के बाद "तेल चढ़ई" लावणी छंद म द्रोपती साहू "सरसिज"लिखथें -
हरदी तेल चढ़त रूप सुघर, रंग सोनहा ला पावय।
दुलरू सुरता मा दुलहिन के, मन मगन मनेमन हावय।।
जस जस हरदी तेल चढ़त हे, दाई कोरा दुरिहावय।
सात तेल हरदी मा रंगे, मया गाँठ हे गँठियावय।।
- बिहाव के दूसर दिन के नेंग मायन,चिकट, हरदाही जेला छन्दकार बोधन राम निषाद अपन दोहा म बताथे-
बर बिहाव के नेंग मा,हरदाही के रंग।
माई पिल्ला खेलथे,मड़वा भीतर संग।।
होथे मायन अउ चिकट,रहिथें झूमत रात।
आथे पहुना खूब जी,खाथें माँदी भात।।
- माई मौरी ल भूंजे के वर्णन प्रदीप छन्द मा इंद्राणी साहू "साँची" करथे -
माई मौरी भूँजे खातिर, काकी-दाई आय हें।
गुरहा रोटी बरा रांध के, ईष्टदेव ल चढ़ाय हें।
मड़वा पूजँय पहुना जुरमिल,हरदी चुपरँय माथ मा।
रीति-रिवाज निभावत जम्मों, सुख-दुख सहिथें साथ मा।।
- तीसर दिन बेरा होथे बरात जाय के। विधाता छंद म दिलीप कुमार वर्मा बरात प्रस्थान के बढ़िया चित्रण करथें -
सजा के मउर माथा मा, चले दूल्हा, बिहाये बर।
बराती संग जावत हे, गवाही दे निभाये बर।
बजत हे जोर के बाजा, परी मन नाच गावत हे।
बहिन दाई जुरे जम्मों, बिदा इखरो करावत हे।
- जे दिन बरात जाथे वो रात के बिहतरा घर के सब महिला मन डीलवा नाचथे। महिला मन स्वच्छंद हो के अपन के मन के भाव ल प्रस्तुत करथें। चंदैनी गोंदा के संस्थापक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी "एक रात का स्त्री राज" म येकर चित्रण करे हवँय। अशोक धीवर "जलक्षत्री" के रोला छन्द देखव -
चल दिन सबो बरात,रात के डिड़वा नाँचय।
नारी हो स्वच्छंद,खुशी सब मिलके बाँटय।।
जइसे मरजी होय, करँय सब अड़बड़ मस्ती।
करँय खूब हुड़दंग, लाज जस हो गँय सस्ती।।
- बराती मन के टेस के का कहना,परघनी के होवत ले इँकर भाव भारी बाढ़े रहिथें। जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" के सरसी छन्द देखव -
मारयँ अड़बड़ टेस बरतिया, मारयँ अड़बड़ टेस।
पहिर जींस टोपी अउ चश्मा, अजब गजब धर भेस।।
डिस्को भँगड़ा नागिन नाचत, कतको गिरयँ उतान।
पिचिर पिचिर बड़ थुकयँ बरतिया, खाके गुटका पान।
बाँटी भौरा के खेलैया, खोजयँ कैरम चेस।
- वधु पक्ष डहर ले बरात के स्वागत करे जाथे जेला परघनी कहे जाथे ये विहंगम दृश्य सार छंद म मनीराम साहू 'मितान' के देखव -
होवत हे परघवनी देखव, आये हवय बराती।
धोती नरियर भेंट करत हें, मिलके सबो घराती।
दुबी कान मा खोंचत हाबँय, बढ़ सब पागा वाला।
पींयर चाउँर माथ टिकत हें, पहिरावत हें माला।
फुटत हवय फटाका नँगते, घड़कत हाबय बाजा।
नवछटहा मन नाचत हें बड़, खुश हे दुलहा राजा।
- बरतिया मन ला भड़े के काम वधु पक्ष के महिला मन करथें । भाजी खवाय ले शुरु भड़ौनी ह भात के खावत ले चलथे। भड़ौनी के दृश्य ल चौपाई छंद म कन्हैया साहू 'अमित' लिखथें-
भड़ैं भड़ौनी अपन घरतिया। समधी, दूल्हा संग बरतिया।।
नेंग-जोख येखर बिन सुन्ना। ताना मारत,गावँय दुन्ना।।
कोन ढेड़हा,कहाँ सुवासा। नता ठगे के बनँय तमाशा।।
का दूल्हा अउ कोन बराती। भडैं भड़ौनी, कुलकय छाती।।
- वर-वधु के सात फेरा ल भाँवर कहे जाथे। भाँवर के बाद टीकावन होथे जेमा वधु पक्ष के डहर ले यथा योग्य सामान, रुपिया, पइसा टीके जाथे ये पूरा रस्म के चित्रण गीतिका छन्द मा डी.पी.लहरे"मौज" कुछ अइसन करथे-
सात भाँवर हा परत हे,गाँव भर सकलाँय हें।
फूल सब झन छींच के आशीष ला बरसाय हें।
गाँव,घर,परिवार के जम्मों टिकावन हा परे।
बाप,महतारी,कका के नैन ले आँसू झरे।।
- अब के बिहाव मा बफे सिस्टम आ गे हे। बफे के विकृति ला छंदविद अरुण कुमार निगम अपन घनाक्षरी मा व्यंग्यात्मक अंदाज म लिखथें-
कोन्हों मन झपटथें,कोन्हों मन हपटथें,
कोन्हों परोसैया नहीं, अब के बिहाव मा |
कोन्हों रसगुल्ला झाड़ें,कोन्हों मन मुहूँ फाड़ें,
कोन्हों मन दाती पाड़ें,तात बड़ा-पाव मा ||
घरवाला मन बड़े, स्वागत दुवारी खड़े,
बाकी मन मंच चढ़े, नकली दिखाव मा |
दया-मया अब कहाँ, सब होगे टकराहा,
रसम निभात हवें,अब के बिहाव मा ||
- बिहाव के अंतिम रस्म बेटी बिदा के होथे,ये बेरा अति भावुक होथे। बेटी बिदा के दृश्य हरिगीतिका छन्द म आशा देशमुख के चित्रण-
बेटी बिदा नोहय सहज, दाई ददा मन जानथें।
ये रीत कन्यादान के, जग मा सबो झन मानथें। ।
धरके कलम गुण भाग्य ला,कैसे विधाता तँय गढ़े।
लेथे जनम दूसर जगह, दूसर जगह जिनगी पढ़े।।
निश्चित ही छन्दकार मन के ये प्रयोग छत्तीसगढ़ी साहित्य ल पोठ करे के काम करत हवय।
- अजय अमृतांशु, भाटापारा (छत्तीसगढ़ )
मो.- 9926160451
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