Nirai mata | निरई माता | नवरात्रि के प्रथम रविवार का जात्रा विशेष
छत्तीसगढ़ आदिकाल से ही देवी-देवताओं की आस्था और साधना का केन्द्र रहा है। इसीलिये इस अंचल के कोने-कोने में देव स्थल है। कहीं धरातल के भव्य मंदिर पर तो कहीं सैकड़ों फीट पहाड़ी की उंची चोटी पर माता विराजमान है। आज हम आपको दर्शन कराते है निरई माता का जो कि गरियाबंद जिला मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर ग्राम पंचायत मोहेरा के आश्रित गांव निरई की पहाड़ी पर स्थित है।
आदिशक्ति मां का अधिकांश मंदिर पहाड़ियों में ही है जहां आसानी से पहुंच पाना संभव नहीं होता है। मां निरई भी ऐसी ही दुर्गम पहाड़ी में बसी हैं जहां पैदल पहाड़ी की उंची चोटी पर चड़ना पड़ता है।
आइये यात्रा शुरू करते है छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से। यहां से टेक्सी व मोटर सायकिल से आसानी से पहुंचा जा सकता है। रायपुर गरियाबंद मार्ग में अभनपुर, राजिम, पांडुका, बारूका होते हुए मोहेरा और फिर निरई ग्राम। निरई ग्राम हालाकि गरियाबंद मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर है किन्तु यह गांव विकासखंड मगरलोड और जिला धमतरी के अंतर्गत आती है।
इस अंचल में आदिवासी व गोड़वाना समाज के लोगों की बाहुलता है, माता निरई इस अंचल की आदिवासियों की कुल देवी है। यहां प्रत्येक नवरात्र के प्रथम रविवार को जात्रा का आयोजन किया जाता है। इस जात्रा में नजदीक ग्राम पंटोरा, मालगांव, कचना धुरवा, बारूका के अलावा मगरलोड, धमतरी, गरियाबंद और रायपुर से भी सैकड़ों भक्त दर्शन करने आते है।
ग्रामीणों के अनुसार उनके पूर्वज सैकड़ों वर्षो से इस स्थान पर माता की आराधना करते आ रहे है। पहुंच मार्ग दुर्गम होने के कारण पहले जात्रा में अधिक लोग शामिल नहीं होते थे किन्तु अब कुछ ही वर्षों में हजारों लोग एक दिन की जात्रा मंर दर्शन करने आते है। भक्तों द्वारा एक दिन में ही सैकड़ों बकरा माता को भेट की जाती है।
नवरात्र के प्रथम रविवार को जात्रा में भक्त माता को अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर बकरे की बलि देते है। चूकि यह अंचल आदिवासियों का है इसीलिए मां की आराधना भी आदिम संस्कृति से की जाती है। माता निरई की इस परिक्षेत्र में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। केवल पुरूष ही माता का दर्शन करने आते है। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से मन्नत मांगते है माता निरई उनकी मनोकामना जरूर पूरी करती है। निरई की पहाड़ी के अलावा नीचे भी माता के दो देव स्थान है जहां बकरा काटा जाता है। एक स्थान में काला बकरा और दूसरे स्थान में खैरा बकरा कटता है। पहाड़ी की कंदरा में विराजमान माता का दर्शन करने के लिये पथरिली दुर्गम रास्तों से उपर चढ़ना पड़ता है। किसी प्रकार का कच्ची-पक्की रास्ता अथवा सीड़ी आदि का निर्माण नहीं किया गया है और न ही किसी प्रकार का छत बना है। यहां आते ही अदभुत अलौकिक शक्ति का संचार होता है जिसके कारण भक्तगण आसानी से निरई धाम में विचरण कर पाते है।
यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि माता जल स्त्रोत से धीरे-धीरे बाहर आ रही थी लेकिन कुछ असमाजिक तत्वों द्वारा सम्मान नहीं किये जाने के कारण माता का निकलना बंद हो गया। इस स्थान पर माता के पांव को स्थापित करके रखा गया है जहां नवरात्र में ज्योति प्रज्वलित की जाती है। यहां पर अब तक किसी प्रकार का मंदिर आदि का निर्माण नहीं किया गया है सभी प्राकृतिक रूप से पेड़-पत्थरों की छाव में विद्यमान है।
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