22 जून कबीर जयंती विशेष: 'संत कबीर अउ छत्तीसगढ़' |
विश्व वंदनीय सद्गुरु कबीर के अवतरण विक्रम संवत १४५५ (सन १३९८ ई) के काशी (वाराणसी) मा माने जाथे। कबीरदास जी के नाम निर्गुन भक्तिधारा के कवि मा सबले ऊँचा माने जाथे,उन हिंदी साहित्य के महिमामण्डित कवि आय। कबीर दास जी जतका बात कहिन सब अकाट्य हे वोला मानेच ल परही, काबर कबीर हमेंशा यथार्थ के बात कहिन। कोरी कल्पना या सुने सुनाये बात उँकर साहित्य म कोमो मेर नइ मिलय।
छत्तीसगढ़ के संदर्भ मा जब हम कबीर के बात करथन तब धनी धर्मदास के नाम सबले पहिली आथे। वइसे तो कबीर के सैकड़ों शिष्य होइन जेमन अपन अपन हिसाब से कबीर के विचारधारा के प्रचार प्रसार करिन फेर धर्मदास के नाम छत्तीसगढ़ के संदर्भ मा सबले जादा मायने रखथे। माने जाथे कि धर्मदास जी वैष्णव सम्प्रदाय के रहिंन परन्तु जब उँकर मुलाकात संत कबीर से होइस तब कबीर के उपदेश ले उन बहुत जादा प्रभावित होइन अउ कबीर के शरण मा आगिन। तदुपरांत धर्मदास अपन सारा संपत्ति (तब लगभग 64 करोड़) ल कबीर पंथ के विस्तार खातिर लगा दिन। कबीर पंथ म ये मान्यता हवय कि धनी धर्मदास के द्वितीय पुत्र मुक्तामणिनाम ल संत कबीर अटल 42 वंश होय के आशीर्वाद दे रहिन जेकर कारण प्रथम वंश गुरु के रूप मा पंथ श्री मुक्तामणिनाम साहब कुदुरमाल म सुशोभित होइन अउ छत्तीसगढ़ मा कबीर पंथ के विस्तार होय लगिन।
वंश गुरु मन धर्मदास के वंशज रहिन अउ अपन अपन कार्यकाल मा के कबीर पंथ के खूब प्रचार प्रसार छत्तीसगढ़ मा करिन। छत्तीसगढ़ के कुदुरमाल, रतनपुर, धमधा, कवर्धा अउ दामाखेड़ा कबीर पंथ के प्रमुख केन्द्र बनिस।
निःसंदेह छत्तीसगढ़ मा कबीरपंथ के सबले जादा अनुयायी दामाखेड़ा गद्दी से जुड़े हवय। इहाँ के अधिकांश आश्रम दामाखेड़ा ले ही सम्बद्ध हवय परन्तु फिर भी दामाखेड़ा ले इतर भी कई कबीर आश्रम के निर्माण होइस अउ कबीर के ज्ञान के खूब प्रचार छत्तीसगढ़ मा होइस। गला मा कंठी, माथा म सफेद तिलक अउ श्वेत वस्त्रधारी साधु, संत,महंत साध्वी मन कबीर के विचार ला सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ मा फैलाइन।
कबीर पंथ मा वंश परंपरा के अनुसार प्रथम पुत्र वंश गद्दी के हकदार होथे अउ बाकी पुत्र ल गुरु गोसाई के दर्जा मिलथे। गुरु गोसाई मन ला चौका आरती करें के पूरा अधिकार होथे। वंश विस्तार के सँग गुरु गोसाई मन घलो कबीर पंथ के विस्तार खातिर जघा-जघा कबीर आश्रम बनाइन अउ पंथ के विधान के अनुसार चौका आरती करिन अउ आजौ करत हवय। दामाखेड़ा मा वंशगुरू दयानाम साहेब के जब कोई संतान नइ होइस तब दयानाम साहेब के सतलोक गमन के बाद गुरुमाता कलाप देवी ह गृन्धमुनि नाम साहेब ल गोद लिन जो कि गुरु गोसाई के सुपुत्र अर्थात वंशज ही रहिन। लेकिन तत्कालीन कबीरपंथी समाज,कुछ साधु महंत मन येकर विरोध करिन अउ नाराज होके काशीदास जी ल गृन्धमुनि नाम निरूपित करके खरसिया मा गुरु गद्दी बना के बइठार दिन। तब से ले के आज पर्यन्त खरसिया मा भी वंश परंपरा चले आते हे।
लेकिन खरसिया के गद्दी मा जो भी वंश गुरु विराजमान होथे वो योग्यता के अनुसार होथे न कि दामखेड़ा सरिक वंश कुल मा जन्म के अनुसार। वर्तमान में अर्धनाम साहब खरसिया गद्दी मा हवय। ये गद्दी मा विराजमान वंशगुरु निहंग होथे येमन धर्मदासी नादवंश कहे जाथे। खरसिया गद्दी से उदितमुनी नाम साहेब काशी म भव्य सतगुरु कबीर प्राकट्य धाम के निर्माण करे हवय अउ कबीर पंथ के प्रचार छत्तीसगढ़ ले बाहिर घलो करत हवय जे हमर बर गरब के बात हवय। ग्राम-नादिया (राजनाँदगाँव/दुर्ग) मा घलो कबीर आश्रम की स्थापना कर उत्तराधिकारी मन प्रचार प्रसार करत हवय।
छत्तीसगढ़ म बीजक अउ पारख सिद्धांत -
मूलतः बीजक ही कबीर के सर्वमान्य ग्रंथ माने गे हवय जेमा निहित कबीर के वाणी (मूलतः साखी,सबद,रमैनी ) संग्रहित हवय। कबीर के शिष्य मा अनेक संत हवय जेन 42 बंश के मान्यता ला एक सिरा से खारिज करथे। इमन बीजक मा वर्णित बात ला ही मानथे अउ बीजक के प्रचार प्रसार करथे। येकर मानने वाला संत मन पारखी संत कहे जाथे। चौका आरती के परंपरा पारख सिद्धांत मा कहीं नइ हे। पारख मा चरण बन्दग़ी के मनाही हवय बंदगी दूर से ही करे जाथे। पारखी संत परंपरा मा अभिलाष दास जी प्रकाण्ड विद्वान होइन। लगभग 80 किताब के रचना उन करिन। महासमुंद, राजिम आदि जघा मा पारखी संत के कबीर आश्रम बने हवय जिहाँ कबीर साहित्य के अध्ययन के सुविधा हवय।
अभिलाष दास जी कबीर के संदेश के प्रचार प्रसार खातिर इलाहाबाद में भव्य कबीर आश्रम बनाइन जिहाँ अध्ययन अउ अध्यापन दूनो के व्यवस्था हवय। अभिलाष दास जी मन छत्तीसगढ़ के पोटियाडीह में भी कबीर आश्रम के स्थापना करिन जिहाँ केवल साध्वी महिला मन ही रहिथे अउ कबीर के उपदेश के प्रचार करथें। संत असंग साहेब (खीरी, उ.प्र) घलो छत्तीसगढ़ आइन अउ ग्राम-सरखोर मा नदी किनारे कबीर आश्रम बना के आज पर्यन्त कबीर वाणी के प्रचार प्रसार करत हवँय। इँकर अनुयायी काफी संख्या मा हवय।
कबीर पंथ अउ चौका आरती -
संत कबीर निर्गुण ब्रम्ह के उपासना म जोर दिन अउ निर्गुण पंथ के स्थापना करिन। निर्गुण भक्तिधारा के उन प्रंथम कवि रहिन। चौका आरती के संबंध म अलग अलग विद्वान मन के अलग अलग मान्यता हवय। कुछ के मतानुसार तात्कालीन समय म हिन्दू समाज मे बलि प्रथा चरम मा रहिस।
उलटबासी अउ कबीर-
छत्तीसगढ़ मा चौका आरती के उपरांत गुरु बनाए के परंपरा हवय। कान फूंका के कंठी माला धारण करे जाथे, संगे संग शुद्ध सात्विकता के पालन करे के वचन गुरु ल दे जाथे। गुरु बनाये के सुग्घर परम्परा आज भी हमर इँहा प्रचलित हवय। दुख अउ दुःख के समस्त काम गुरु के द्वारा ही सम्पन्न कराये जाथे।
सबो पाठक ल जोहार..,
हमर बेवसाइट म ठेठ छत्तीसगढ़ी के बजाए रइपुरिहा भासा के उपयोग करे हाबन, जेकर ल आन मन तको हमर भाखा ल आसानी ले समझ सके...
छत्तीसगढ़ी म समाचार परोसे के ये उदीम कइसे लागिस, अपन बिचार जरूर लिखव।
महतारी भाखा के सम्मान म- पढ़बो, लिखबो, बोलबो अउ बगराबोन छत्तीसगढ़ी।