जगत के स्वामी भगवान जगन्नाथ ह उड़ीसा राज के पुरी म समुंदर तिर बिराजे हावय। अइसे मनाता हावय के भगवान जगन्नाथ, बलभद्र अउ सुभद्रा ह नगर देखे खातिर अपन धाम ले रथ म सवार होगे निकले रिहिन। जगत के पालनहार भगवान ह जनता के दुख पीरा हरे खातिर अइस जोंग रचिस। जेला 'रथयात्रा' के रूप म मनाये जाथे। ये परब असाढ़ महीना के दूतिया तिथि म होथे इही सेती ये दिन ल छत्तीसगढ़िया मन 'रजुतिया' या 'रथ दूतिया' के रूप म मनाथे। मूल रूप से ये उत्कलवासी मनके परब आए। सबो राज के अपन-अपन विशेषता होथे परब-संस्कृति ल लेके, उही रकम ले उड़ीसा के जगन्नाथ रथयात्रा ह उड़ीसा के चिन्हारी आए।
'रजुतिया' या 'रथ दूतिया' परब ल पूरा देश म 'रथयात्रा' के रूप म आज के दिन मनाये के चलागन ए हा जगन्नाथपूरी ले शुरू होए रिहिस। अब तो जिहां-जिहां उत्कलवासी हावय उहां खास उच्छाह ले मनाये जाथे, अउ उत्कलवासी नइये तेमो म भगवान के यात्रा बड़ धूमधाम ले निकाले जाथे।
छत्तीसगढ़ म देखे जाए तो रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़ जइसे बड़का शहर मन म बिसेस रूप ले मनाये जाथे। अउ बड़े शहर म जगन्नाथ मंदिर तको बनगे हावय। फेर सबले माने-गुने के ये बात हावय के छत्तीसगढ़ म जिहां जगन्नाथ के मंदिर नइये तिहो तको एक दिन बर भगवान जगन्नाथ, बलभ्रद अउ सुभद्रा के सिरजन कर सुघ्घर रथ सजागे, गांव भर किंजारथे। जेन किसम ले जगन्नाथपूरी म होथे उही अंताजन रजुतिया परब ल जुरमिलके मनाथे।
Jagannath Rath Yatra : अइसे केहे जाथे के हरेके बच्छर असाढ़ के महीना अंजोरी पाख के दूज के दिन भगवान जगन्नाथ ह बड़े भाई बलराम अउ बहिनी सुभद्रा के संग रथ म सवार होके निकलथे अउ जेन भी जगन्नाथ रथ यात्रा के दर्शन करथे उंकर सबो संकट दूर हो जाथे।
जगन्नाथपुरी के रथ यात्रा-
रथयात्रा के माई तिहार तो उड़ीसा के जगन्नाथपुरी मंदिर म मनाये जाथे। भगवान श्रीकृष्ण, बलभद्र, देवी सुभद्रा खातिर नीम के लकड़ी ले रथ बनाये जाथे। सबले आगू बड़े भाई बलराम के रथ, बीच म बहिनी सुभद्रा अउ पाछू म महाप्रभ जगन्नाथ श्रीकृष्ण के रथ होथे। ये पावन परब म भगवान के दर्शन खातिर देशभर ही नहीं बल्कि विदेश ले तको दर्शनार्थी मन आथे।
तीन रथ मनके तको अलग-अलग नाम अउ रंग होथे-
बलराम के रथ ल तालध्वज केहे जाथे, येहा रंग लाल अउ हरियर रंग के होथे। देवी सुभद्रा के रथ ल दर्पदलन या पद्मरथ कहे जाथे जेन हा करिया या नीला रंग के होथे। भगवान जगन्नाथ के रथ ल नंदिघोष या गरुड़ध्वज कहेे जाथे, येहा पीला या लाल रंग के होथे।
मीत-मितानी अउ गजामुंग-
'रजुतिया' के परसाद- 'रजुतिया' के दिन के परसाद के विशेष महत्ता हावय। ये परसाद 'गजामुंग' किथे। लोक जीवन म कोन रस्म कहा ले सुरू हो हो जही कल्पना नइ करे जा सकय, छत्तीसगढ़ मीत-मितानी के अड़बड़ मरम हावय। इही म एक नाम गजामुंग के तको आथे। जेन भगवान के अउ परसाद के महिमा हाबे तेन तो अलगे हावय फेर परसाद ल एक दूसर ल खवाके जिनगी भर एक दूसर मीत-मितानी के नता निभाये के रिवाज ही छत्तीसगढ़ के विशेषता आए।
रथयात्रा विशेष
- जयंत साहू
संपादक 'अंजोर' वेबपोर्टल
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