होली कइसे जलथे, कहां ले आथे लकड़ी-छेना अउ आगी? ...छत्तीसगढ़ के संदर्भ म बड़ ठोस बात बताइन साहित्यकार सुशील भोले

अंजोर
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होली कइसे जलथे, कहां ले आथे लकड़ी-छेना अउ आगी? ...छत्तीसगढ़ के संदर्भ म बड़ ठोस बात बताइन साहित्यकार सुशील भोले


हमर परंपरा: कुँवारी आगी अउ रोग-राई के दहन

होली परब म होले डाँड़ म जलाए खातिर जेन लकड़ी, छेना या अन्य जिनिस सकलाय रहिथे, वोला जलाए बर कुँवारी आगी के उपयोग करे जाथे, अउ वोमा जम्मो जीव-जन्तु अउ गाँव ल जम्मो किसम के रोग-राई ले बचा के राखे के प्रतीक स्वरूप घलो कुछ खून चूसक किटाणु मन ल वोमा डार के भसम कर दिए जाथे।

हमन गाँव म राहन त अपन बबा संग होले डाँड़ जावन। वो हमन ल पाँच ठन छेना धरे बर घलो काहय। ए पाँच छेना ह कोनो भी मृतक के दाह संस्कार के बेरा पँचलकड़िया दिए जाथे, तेकरे प्रतीक स्वरूप होवय।

हमर गाँव म वइसे फाग गीत गाए-बजाए खातिर कतकों ठउर राहय। सबो पारा वाले मन अपन-अपन पारा म चौक-चातर असन जगा देख के गावयँ-बजावयँ, फेर होले बारे के परंपरा ल पूरा बस्ती म एकेच जगा निभाए जाय।
गाँव के बइगा ह अपन जम्मो तैयारी-सँवागा संग होले डाँड़ म आवय अउ चिकमिक पखरा म लोहा के एक नान्हे खुरदुरा टुकड़ा म छनडाती असन मारय, जेमा ले आगी के लुक छटकय  तहाँ ले ओमा रखाय छोटे असन पोनी ह वो लुक के संपर्क म आए ले गुँगवाय बर धर लेवय। तहाँ ले वोला फूँक-फूँक के बने सिपचावय, अउ वो जगा सकलाय-रचाय लकड़ी के  ढेरी म ढील देवय।

बइगा जेन चिकमिक पखरा ले आगी सिपचावय, उही ल कुँवारी आगी कहे जाथे। एमा चिकमिक पखरा म जेन पोनी या रूई के उपयोग होथे, वोहा सेम्हरा पेड़ के फर ले निकलने वाला पोनी होथे। कतकों गाँव म शायद अब ए परंपरा नइ दिखत होही। अब चिकमिक पखरा ले आगी सिपचाए के बदला कोनो मंदिर-देवाला या अन्य माध्यम ले आगी सिपचाए के जोखा करे जावत होही।

होले म आगी सिपचे के बाद सबो झन वोकर आँवर-भाँवर किंजरन अउ संग म लेगे पाँच ठन छेना ल पचलकड़िया के प्रतीक स्वरूप वोमा डार देवन। कतकों झन अपन घर ले ढेकना, किन्नी, पिस्सू जइसे खून चूसक किटाणु मन ल घलो लेके जावय अउ वो बरत होले म डार देवय। सियान मन बतावयँ- ए ह गार-गरु अउ जम्मो गाँव ल खुरहा-चपका के संगे-संग अउ अन्य किसम के फैलने वाले बीमारी अउ महामारी मन ले बचाए खातिर उँकर मन के किटाणु के प्रतीक स्वरूप डारे जाथे।

होले जब अच्छा से बर जाय अउ जब वोमा ले राख निकले लगय, त फेर सब झन वोमा के राख ल धर के एक-दूसर के माथ म लगावन तहाँ ले  अपन-अपन घर लहुट आवन।
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर

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