भक्त शिरोमणि माँ कर्मा देवी की जीवनी

अंजोर
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भक्त शिरोमणि माँ कर्मा देवी की जीवनी


bhakt shiromani maa karma devi ki jivani: भक्त शिरोमणि माँ कर्मा देवी का जीवन एक अद्वितीय प्रेरणा है, जो भक्ति, समर्पण, और सेवा के उच्चतम आदर्शों का प्रतीक है। उनका जन्म चैत्र कृष्ण पक्ष 11, संवत 1073 को हुआ था। राम साह नामक एक सम्मानित व्यक्ति के घर जन्मी कर्मा देवी वाघरी वंश के वैश्य समुदाय से थीं और अपनी माता-पिता की इकलौती संतान थीं। उनका बचपन अत्यधिक स्नेह और सादगी में बीता और वे बचपन से ही भक्ति के प्रति गहरी श्रद्धा रखती थीं।

कर्मा देवी को भगवान श्री कृष्ण की भक्ति से विशेष लगाव था। वह अपने पिता के साथ नियमित रूप से श्री कृष्ण की मूर्ति के सामने भजन गाया करती थीं, जिनकी मधुर आवाज से सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते थे। उनकी भक्ति की ख्याति धीरे-धीरे झाँसी से पूरे उत्तर प्रदेश में फैलने लगी।

जब वह विवाह योग्य हुईं, तो उनके पिता ने उनका विवाह नरवर के प्रसिद्ध साहूकार पदमजी से कर दिया। विवाह के बाद भी उनकी भक्ति में कोई कमी नहीं आई। एक दिन जब वे श्री कृष्ण की भक्ति में गाने में व्यस्त थीं, उनके पति ने भगवान की मूर्ति को छिपा दिया। जब कर्मा ने आँखें खोलीं और मूर्ति गायब देखी, तो वह घबराकर बेहोश हो गईं। होश में आने पर उन्होंने अपने पति से कहा कि भगवान दयालु हैं और वह अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं। उनकी यह बात सुनकर उनके पति को अपनी शरारत पर पछतावा हुआ और उन्होंने भगवान की मूर्ति लौटाई।

कर्मा देवी की भक्ति, दीन-दुखियों के प्रति करुणा, और सेवा भावना के कारण उनकी ख्याति नरवर में फैलने लगी। लेकिन कुछ पाखंडी तत्वों ने उनके विरुद्ध साजिश रच दी। नरवर के राजा का प्रिय हाथी बीमार पड़ गया और बड़े-बड़े वैद्य भी नाकाम रहे। इन पाखंडी तत्वों ने राजा को यह सलाह दी कि हाथी को तेल से भरे कुंड में नहलाने से वह ठीक हो जाएगा। इसके लिए तेलियों को बिना मुआवजे के तेल देने का आदेश दिया गया, जिससे वे भुखमरी के शिकार हो गए। कर्मा देवी ने इस संकट को देखा और भगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना की कि वह तेलियों की मुसीबत दूर करें। भगवान ने बाल रूप में दर्शन दिए और बताया कि राजा से कहें कि मेरे घर के कोल्हू से कुंड तक नाली बनवाए। जब ऐसा हुआ, तो रातभर कोल्हू चला और कुंड तेल से भर गया। यह चमत्कार नरवर में जंगल की आग की तरह फैल गया और कर्मा देवी की भक्ति की जय-जयकार होने लगी।

लेकिन सुख के साथ दुख भी आया। अचानक उनके पति का निधन हो गया, और कर्मा का दिल टूट गया। वह भगवान से यह पूछने लगीं कि उनका सुहाग क्यों छीन लिया गया। भगवान ने उन्हें समझाया कि यह संसार का नियम है, और जो आता है, वह जाता है। कर्मा देवी ने सती होने का विचार किया, लेकिन भगवान ने उन्हें बताया कि वह गर्भवती हैं और सती होना पाप है। तीन महीने बाद उनका पुत्र हुआ, लेकिन पति के निधन का दुःख कम न हुआ।

कर्मा देवी ने बाद में भगवान के दर्शन के लिए जगन्नाथपुरी की यात्रा शुरू की। रास्ते में वे भूख और प्यास से परेशान हुईं, लेकिन वह चलते रही और एक दिन भगवान श्री कृष्ण ने उनकी भक्ति देख उन्हें जगन्नाथपुरी पहुँचा दिया। जब वह मंदिर पहुँचीं, तो द्वारपाल ने उन्हें फटे वस्त्रों के कारण रोक लिया। एक ब्राह्मण ने उन्हें धक्का दिया, जिससे वह गिरकर बेहोश हो गईं। होश में आने पर वह समुद्र तट पर थीं। यहाँ भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी खिचड़ी का भोग स्वीकार किया। यही कारण है कि आज भी जगन्नाथपुरी में कर्मा देवी की खिचड़ी का भोग पहले चढ़ाया जाता है।

कर्मा देवी का जीवन भक्ति, श्रद्धा और समर्पण का अद्भुत उदाहरण है। उनका सम्पूर्ण जीवन भगवान श्री कृष्ण के प्रति अडिग विश्वास, दीन-दुखियों के प्रति करुणा और सच्चे आस्थावान कार्यों से भरा हुआ था। उनके कार्यों ने समाज में एक नई दिशा दी और उन्हें एक अमर भक्त के रूप में स्थापित किया। आज भी उनकी भक्ति की ख्याति जीवित है, और उनकी खिचड़ी का भोग जगन्नाथपुरी मंदिर में श्रद्धालुओं को अर्पित किया जाता है, जो उनकी अमर भक्ति का प्रतीक है।

भजन: कर्मा देवी की भक्ति अपार

"ताल- दादरा", "राग- बिहाग"


कर्मा देवी की भक्ति अपार, सब पर कृपा करें,
श्री कृष्ण के चरणों में बसे, जिनका जीवन सहे।
दीन-दुखियों की सेवा करें, सच्चे प्रेम में खो जाए,
माँ कर्मा के आशीर्वाद से, हर दुख दूर हो जाए।

चैत्र कृष्ण पक्ष में जन्मी, कर्मा देवी की तिथि,
राम साह के घर आयीं, भाग्य की थी ये रीत।
एकलौती संतान थीं वे, भक्ति में हर दिन रमाय,
सादगी और प्रेम में पली, कृष्ण के संग नाय। 1

श्री कृष्ण के प्रति भक्ति, माँ कर्मा का संसार,
हर दिन भजन करतीं, गातीं प्रेम से उनका हार।
मन में कृष्ण बसते थे, हर क़दम में उनका साथ,
संग गातीं सुमिरन उनका, यही था उनका विश्वास। 2

पदमजी से ब्याह हुआ, नरवर नगर में बसा,
भक्ति में फिर भी कोई कमी, नहीं माँ ने दिखाया रुखा।
मूर्ति छिपाई थी पति ने, कर्मा ने कहा यही,
"भगवान की परीक्षा होती है, देखो वह हैं सच्चे बधाई।" 3

राजा का हाथी बीमार हुआ, वैद्य भी थे असमर्थ,
कर्मा ने कृष्ण से प्रार्थना की, दूर हो संकट का भय।
कृष्ण ने दर्शन दिया बाल रूप में, बताया राजा को मंत्र,
"कोल्हू से कुंड तक नाली बनवाओ, तेल भरेगा घट।" 4

कर्मा माँ चलीं जगन्नाथपुरी, दर्शन की इच्छा थी,
राह में भूख-प्यास से थकी, फिर भी ना मन विचलित।
द्वारपाल ने रोका, फटे वस्त्रों पर हंसा,
फिर कृष्ण ने दिया दर्शन, खिचड़ी का भोग स्वीकार किया। 5

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